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कब मनाएं रक्षाबंधन? 30 अगस्त या 31 अगस्त, पढ़े क्या कहना डॉ सोनिका जैन का।

जेएल न्यूज / JL NEWS

करनाल (हरियाणा) / 27-08-2023

(रिपोर्ट – राजेंद्र कुमार)

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस बार श्रावण पूर्णिमा तिथि दो दिन यानी 30 और 31 अगस्त को पड़ रही है, साथ ही श्रावण पूर्णिमा तिथि पर भद्रा का साया भी रहेगा।

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कभी भी रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा का साया रहने पर नहीं मनाया जाता है। भद्रा काल में बहनों को भाई की कलाई में राखी बांधना वर्जित होता है। भद्रा काल के समय को बहुत ही अशुभ माना गया है और इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

 

आइए जानते हैं रक्षाबंधन के त्योहार पर कब तक रहेगा भद्रा का साया और राखी का त्योहार कब मनाएं और राखी बांधने का क्या होगा शुभ मुहूर्त

 

कब से कब तक रहेगा रक्षाबंधन पर भद्रा का साया ?

 

इस साल रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से भद्रा लग जाएगी। जो रात को 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। इस साल भद्रा रक्षाबंधन के दिन पृथ्वी पर वास करेंगी, जिस कारण से भद्रा में राखी बांधना शुभ नहीं रहेगा। वहीं दूसरी तरफ श्रावण पूर्णिमा 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 07 मिनट पर खत्म हो जाएगी। कई पंचांगों में रक्षाबंधन 30 अगस्त बुधवार को रात्रि 9 बजकर 1 मिनट के बाद लिखा है, जो सैद्धांतिक दृष्टि से ठीक हो सकता है, मगर व्यावहारिक दृष्टि से बिल्कुल ठीक नहीं। इसलिए 31 अगस्त सन् 2023 गुरुवार को प्रातः 9 बजे श्रवण पूजन के उपरांत सायंकाल 5 बजे तक रक्षाबंधन राज-समाज के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा। उदया तिथि के हिसाब से भी रक्षाबंधन 31 तारीख को मनाया जाना ज्यादा शुभ है।

 

पूर्णिमा पर ही क्यों मनाते हैं रक्षाबंधन ?

पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक में रहने चले गए, तब देवी लक्ष्मी चिंतित हो उठी। पति को वापस लाने के लिए नारद जी ने देवी लक्ष्मी से कहा कि आप राजा बलि को राखी बांधकर भाई बना लीजिए और वरदान के रूप में भगवान विष्णु को मांग लीजिए। देवी लक्ष्मी ने भेष बदलकर राजा बलि को राखी बांधी और विष्णु जी को मांग लिया। संयोग से उस दिन सावन पूर्णिमा थी। ऐसा माना जाता है कि तभी से भाई- बहन का पवित्र पर्व रक्षाबंधन मनाया जाने लगा। कहते हैं कि सबसे पहले देवी लक्ष्मी ने ही राखी बांधने की शुरुआत की थी।

 

रक्षाबंधन का इतिहास

रक्षाबंधन को लेकर महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। जब इंद्रप्रस्थ में शिशुपाल का वध करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र चलाया था। उसी दौरान श्रीकृष्ण को भी उंगली में चोट आई थी। उस समय द्रोपदी ने अपने साड़ी का पल्लू फाड़ के भगवान के उंगली पर बांध दिया। तब श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को वचन दिया था कि वह उसकी रक्षा करेंगे। भगवान ने चीर हरण के वक्त द्रौपदी को दिया वचन निभाया और उनकी लाज बचाई।

 

जैन धर्म में रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है?*

रक्षाबंधन के दिन मुनिराज विष्णु कुमार ने वामन का वेश धारण कर राजा बलि से तीन पैर धरती मांगी और तीन पग में ही सारा संसार नाप कर उन मुनियों की रक्षा की और राजा बलि को देश से निकाल दिया। इसी पर्व को जैन समाज एक दूसरे की रक्षा करने हेतु मनाते है।

 

भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी?

 

भद्रा को अशुभ मुहूर्त मानने के कारण उस समय में राखी नहीं बांधी जाती है। लोक मान्यता है कि रावण की बहन ने उसे भद्रा में राखी बांधी थी तो उसका सब कुछ खत्म हो गया।

 

रक्षाबंधन का त्योहार हर साल सावन के महीने की पूर्णिमा को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं।उन्हें मिठाई खिलाती हैं। वहीं दूसरी ओर भाइयों से ये अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी बहनों की रक्षा करें। उन्हें दुनिया की सभी बुराइयों से बचाएं। ये त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

डॉ सोनिका जैन

चेयरपर्सन – ज्योतिष ज्ञानपीठ

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