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“आज के जमाने में जितना रिश्ता,उतना दर्द”-डॉ० वनीता चोपड़ा

जेएल न्यूज / JL NEWS

करनाल (हरियाणा) / 27-08-2023

(रिपोर्ट – राजेंद्र कुमार)

घर के आंगन में सफेद कपड़े में लिपटे मां के पार्थिव-शरीर को घेरे लोग बैठे हुए थे।अलका अलग कोने में बैठी सुबक रही थी। कुछ औरतें विलाप करती बतियाती भी जातीं। अलका के कानों में आवाज पड़ी,”बेचारी भरी जवानी में चल बसी।कुछ दिन और जी लेती तो बेटी के हाथ पीले होते देख जाती।”

तभी अलका की नजर अपनी चाची रश्मि पर पड़ी।उस ने देखा कि चाची एक तरफ खिसकाए गए सोफे पर आराम से बैठी है।तभी एक औरत चाची से गले मिलने के लिए आगे बढ़ती कि साथ में खड़े चाचा उसे रोकते हुए बोले,”भाभी जी, डॉक्टर ने रश्मि को रोने के लिए मना किया है क्योंकि आजकल यह बीमार है। अभी इसकी दवाई चल रही है।” चाचा की बात सुन वह औरत चुपचाप दरी पर आ बैठी।अलका ने देखा कि रुलाई वाले माहौल में चाची की आंख से एक भी आंसू नहीं टपका था। चाची के चेहरे पर जेठानी की मौत के दर्द का कोई भाव न था। थोड़ी देर बाद लोग मां की अर्थी को कंधा दे, उठाकर चलने लगे। दुखी दिल से अलका मां को सदा के लिए विदा होते देखती रही। धीरे-धीरे सब लोग अपने-अपने घरों को लौट गए।

 

अलका की मां को गुजरे मुश्किल से हफ्ता भी नहीं हुआ था कि अलका के पिता जी के पास उसके चाचा का फोन आया। उन्होंने बताया कि रश्मि के पिता जी चल बसे हैं। शहर में ही चाची का पीहर था इसलिए अलका भी अपने पिता के साथ मातमपुर्सी में शामिल होने वहां चली आई । वहां अलका की नजर अपनी चाची पर पड़ी तो दंग रह गई। उसकी चाची जमीन पर बिछी सफेद दरी पर सफेद चुन्नी ओढ़े औरतों के गले लग ऊंची-ऊंची आवाज़ में रो रही थी। अलका ने देखा कि चाची की आंखें आंसुओ से भरी हुई थीं।

तभी आंखों से बहे दो मोटे आंसू गालों से होते हुए नीचे आ गिरे। यह दृश्य देख अलका बरबस मन ही मन बुदबुदाई,” आखिर आ ही गए चाची की आंखों में आंसू ! सच है , जिससे जितना रिश्ता होता है,उतना ही दर्द होता है।”

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