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देशभर के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत गेहूँ एवं जो अनुसंधानकर्ताओं की 62वीं कार्यशाला का किया गया आयोजन

जेएल न्यूज / JL NEWS

04-09-2023

(रिपोर्ट – राजेंद्र कुमार)

भाकृअनुप- भारतीय गेहूँ एवं जो अनुसंधान संस्थान, करनाल की अगुवाई में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान) में 28 से 30 अगस्त, 2023 के दौरान देशभर के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत गेहूँ एवं जो अनुसंधानकर्ताओं की 62वीं कार्यशाला का आयोजन किया गया। गौरतलब है कि यह कार्यशाला वर्षभर के दौरान गेहूँ एवं जौ के अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिकों से उनके शोध उपलब्धियों, अनुभवों एवं इस अवधि में आई चुनौतियों को साझा करने के लिए प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में आयोजित की जाती है। इस कार्यक्रम में गेहूँ व जौ के आगामी फसल वर्ष में होने वाली अनुसंधान गतिविधियों का खाका खींचा गया। इस 62वीं अखिल भारतीय गेहूँ एवं जो अनुसंधानकर्ताओं की कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविदयालय, उदयपुर के कुलपति डॉ अजीत कुमार कर्नाटक ने की । इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक तथा सचिव, डेयर, डॉ हिमांशु पाठक ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। डॉ टी आर शर्मा, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि थे। परिषद में सहायक महानिदेशक (बीज) डॉ. डी. के. यादव व सहायक महानिदेशक (खाद्य व चारा फसलें) डॉ एस के प्रधान ने इस समारोह में बतौर विशेष अतिथि अपनी उपस्थति दर्ज की। इस कार्यशाला में विभिन्न सत्र जैसे गेहूं और जो सुधार के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, समसामयिक मुद्दों पर विशेष सत्र किस्म पहचान समिति (वीआईसी) की बैठक, प्रगति रिपोर्ट की अनुभाग- अनुसार प्रस्तुति (2022-23), जौ के बढ़ते क्षेत्रफल एवं उत्पादन पर पैनल चर्चा, एनएचजेड और पीजेड केंद्रों द्वारा अनुसंधान कार्य की प्रगति, राज्यों से स्थिति रिपोर्ट और किसानों से चर्चा एवं समग्र सत्र आदि रखे गए थे। मुख्य अतिथि डॉ हिमांशु पाठक ने देश में इस फसल वर्ष गेहूँ के रिकॉर्ड 112 मिलियन टन उत्पादन को प्राप्त करने पर देशभर के गेहूँ वैज्ञानिकों, किसानों व नीति नियंताओं को बधाई देते हुए कहा कि अब भारत विश्व का पेट भरने में सक्षम बनने की ओर दृढ़ता से बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि अब हमें जलवायु परिवर्तन में संबंधित फसल उपज में गिरावट की समस्या पर विजय प्राप्त कर सकने वाली तकनीकों का विकास करने पर ध्यान देना होगा। साथ ही ट्रांसबाउंडरी फसल रोगों के भारत में प्रवेश के बढ़ते खतरों को ध्यान में रखकर काम करने की जरूरत है। इस संदर्भ में उन्होंने भारत – सिम्मिट सहयोग से गेहूँ के ब्लास्ट रोग के विरुद्ध चल रहे सफल जननद्रव्य मूल्यांकन एवं भारत की अग्रिम पादप प्रजनन तैयारियों को सराहनीय करार दिया। दूसरे दिन विभिन्न अनुभागों जैसे फसल सुधार फसल सुरक्षा, संसाधन प्रबंधन, गुणवत्ता, जो नेटवर्क के द्वारा प्रगति रिपोर्ट की अनुभाग अनुसार प्रस्तुति (2022-23) मुख्य सत्र में से एक था। इसके अलावा जो की खेती के अंतर्गत क्षेत्र विस्तार हेतु पैनल चर्चा और एनएचजेड और पीजेड केंद्रों के द्वारा अनुसंधान कार्य की प्रगति और कार्य-योजना को अंतिम रूप देने के सत्र की प्रस्तुति हुई। तीसरे व अंतिम दिन राज्यों से स्थिति रिपोर्ट और किसानों से बातचीतका सत्र एवं समापन सत्र की प्रस्तुति हुई। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक तथा पूर्व सचिव, डेयर, डॉ आर. एस. परोदा ने शिरकत की। इस सत्र के अध्यक्ष गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ पी एल गौतम थे। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डॉ अजीत कुमार कर्नाटक इस सत्र के उपाध्यक्ष थे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (खाद्य व चारा फसलें) डॉ एस के प्रधान ने इस समारोह में बतौर विशेष अतिथि अपनी उपस्थित दर्ज की। संस्थान की ओर से इस कार्यक्रम के आयोजक सचिव प्रधान वैज्ञानिक डॉ रतन तिवारी व सह-आयोजक सचिव वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ चरण सिंह थे।

 

भाकृअनुप- भारतीय गेहूँ एवं जो अनुसंधान संस्थान, करनाल के निदेशक डॉ ज्ञानेन्द्र सिंह के अनुसार 62वीं अखिल भारतीय गेहूँ एवं जो अनुसंधान कार्यशाला की मुख्य सिफारिशें हैं:

 

प्रजनन परीक्षणों में सभी प्रविष्टियों को महत्वपूर्ण श्रेष्ठता के आधार पर आगे बढ़ाया जायेगा ।।

 

V अग्रिम प्रजनन प्रविष्टियों के परीक्षण जोनलकोर्डिनेटिंग यूनिट अपने वहीं बनायेगी।

 

✓ मध्य क्षेत्र में डायकोकम गेहूँ पर विशेष परीक्षण शुरू किया जायेगा तथा एनआईबीटी-4 परीक्षण उत्तर पश्चिमी मैदानी भागों में भी किये जायेंगे।

 

V गुणवत्ता घटक और सर्वर्धित नर्सरी की शुरुआत करने की सिफारिश की गयी।

 

गेहूँ में पती रतुआ, तना रतुआ व हैडस्केब के नियंत्रण के लिए टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत + ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रॉबिन 25 प्रतिशत दवा के 0.06 प्रतिशत घोल के छिड़काव की सिफारिश की गयी।

गेहूँ में पत्ती झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु टेबुकोनजोल 50 प्रतिशत + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रॉबिन 25 प्रतिशत का 0.1 प्रतिशत घोल के छिड़काव की सिफारिश की गयी।

 

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